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सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने सीवीसी को भेजे जवाब में मोदी सरकार पर गंभीर सवाल उठाए हैं

Penulis : Suhail Ansari on Saturday 17 November 2018 | 04:11

Saturday 17 November 2018

सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने कहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के एक बड़े अधिकारी के इशारे पर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा रही है. उन्होंने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी पर पक्षपात और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने का आरोप भी लगाया है.


नई दिल्ली: बीते 23 अक्टूबर को केंद्र सरकार द्वारा छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी पर पक्षपात और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. इतना ही नहीं, आलोक वर्मा ने मोदी सरकार पर भी ये आरोप लगाया है कि उनकी वजह से ही इस समय देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी में घमासान चल रहा है.

हाल ही में आलोक वर्मा ने सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ हैदराबाद के एक कारोबारी सना सतीश से रिश्वत लेने के आरोप में एफआईआर दर्ज किया था. इसके बदले में राकेश अस्थाना ने भी आलोक वर्मा पर कुछ इसी तरह के आरोप लगा दिए.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सच का पता लगाने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग को जांच करने का आदेश दिया. इसके बाद सीवीसी ने आलोक वर्मा को जवाब देने के लिए कई सारे सवालों की एक सूची भेजी थी.

आलोक वर्मा का जवाब
द वायर  ने आलोक वर्मा द्वारा भेजे गए जवाबों की कॉपी देखी है. अपने जवाब में वर्मा ने राकेश अस्थाना पर तीखा हमला बोला है और मामले में सीवीसी जांच पर सवाल उठाया है. वर्मा ने कहा कि सतर्कता आयोग अस्थाना द्वारा उन पर लगाए गए आधारहीन आरोपों पर जोर दे रही है. वर्मा ने अपने जवाब में कहा कि अस्थाना ने उनके खिलाफ तभी आरोप लगाया जब उन पर एजेंसी द्वारा एफआईआर दर्ज किया गया.

सीबीआई निदेशक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी को निर्देश दिया था कि वे उनके खिलाफ उन आरोपों की जांच करे जो कि 24 अगस्त को कैबिनेट सचिव के पास भेजा गया था. हालांकि उन आरोपों पर एक भी सवाल नहीं पूछा गया है. उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर सवाल 24 अक्टूबर, 2018 के बाद लिए गए निर्णयों से संबंधित हैं और ऐसा लगता है कि ये सब राकेश अस्थाना द्वारा सीवीसी को 18 अक्टूबर, 2018 को भेजे गए पत्र से है.’

वर्मा ने आगे कहा, ‘अक्टूबर में राकेश अस्थाना ने सीवीसी को जो पत्र लिखा गया था वो उन्होंने उनके खिलाफ रिश्वत मामले में एफआईआर दर्ज होने के बाद लिखा था.’ वर्मा ने कहा कि सीबीआई ने रिश्वत मामले में एक मुख्य आरोपी मनोज प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया है और सना सतीश के बयान दर्ज कर लिए गए हैं.

राकेश अस्थाना पर आरोप है कि उन्होंने सना सतीश से पांच करोड़ के रिश्वत की मांग की थी और उन्हें तीन करोड़ की पेमेंट कर दी गई है. वर्मा ने कहा कि सीबीआई के पास अस्थाना के खिलाफ वाट्सऐप मैसेजेस, कॉल इंटरसेप्ट्स और कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स हैं.

वर्मा ने अपने जवाब में सीवीसी की जांच पर भी सवाल उठाया है और इस ओर इशारा कि है कि उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए अस्थाना और केवी चौधरी को प्रधानमंत्री कार्यालय के बड़े अधिकारियों का समर्थन प्राप्त है.

वर्मा ने सीवीसी को लिखा, ‘ऐसा लगता है कि सीवीसी मेरी अखंडता और निष्पक्षता पर असर डालने के लिए घुमा-फिरा कर काम कर रही है. पिछले 39 सालों के मेरे करिअर में चार राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस फोर्स और दो संस्थानो (सीबीआई सहित) में काम के दौरान कभी भी मेरी निष्पक्षता पर सवाल नहीं उठा है. मुझे इस बात को लेकर हैरानी है कि सीवीसी ने जिस तरीके से मुझसे सवाल पूछा है उससे ऐसा लगता है कि मैं पहले से ही दोषी हूं और मुझे खुद को निर्दोष साबित करना है.’

उन्होंने आगे लिखा, ‘ऐसा लगता है कि अस्थाना को निर्दोष साबित करने की कोशिश हो रही है जबकि उनके खिलाफ रिश्वत मामले में एफआईआर दर्ज है और उनकी एसआईटी जांच के दायरे में है.’

सीबीआई निदेशक ने सीवीसी को याद दिलाया कि उन्होंने पिछले साल ही राकेश अस्थाना की अखंडता पर आपत्ति जताई थी लेकिन आयोग ने अस्थाना के खिलाफ आधा दर्जन मामलों की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया. वर्मा ने ये भी कहा कि सीवीसी और पीएमओ के अधीन आने वाले कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, ने उनकी आपत्तियों को खारिज करते हुए साल 2017 में राकेश अस्थाना को विशेष निदेशक नियुक्त किया था.

वर्मा ने कहा, ‘मैंने ये बताया था कि सीबीआई राकेश अस्थाना के खिलाफ छह मामलों में जांच कर रही है, बावजूद इसके उनकी नियुक्ति की गई.’

अस्थाना के आरोप और वर्मा के जवाब
सीवीसी वर्मा के खिलाफ अस्थाना द्वारा लगाए गए चार आरोपों की जांच कर रही है. पहला आरोप ये है कि आलोक वर्मा उनकी जांच में हस्तक्षेप कर रहे थे और आईआरसीटीसी घोटाला मामले में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ छापेमारी रोकने की कोशिश की.

अस्थाना ने दूसरा आरोप ये लगाया है कि सीबीआई निदेशक ने मोईन कुरैशी मामले में उन्हें स्वतंत्र तरीके से जांच नहीं करने दे रहे थे और कई सारी अड़चने डाल रहे थे. तीसरा आरोप ये है कि आलोक वर्मा सीबीआई में दो ऐसे आईपीएस अधिकारियों की भर्ती की थी जिनका रिकॉर्ड ठीक नहीं है.

आखिरी आरोप ये है कि वर्मा ने चंडीगढ़ में प्रवर्तन निदेशालय के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर गुरनाम सिंह के घर पर छापेमारी से रोक दिया था. आय से अधिक संपत्ति के मामले में गुरनाम सिंह पर जांच चल रही है.

हालांकि वर्मा ने इन सभी आरोपों से इनकार कर दिया है. उन्होंने आधिकारिक नियमों, फाइल नोटिंग्स और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले को आधार बनाते हुए अपने फैसले को सही ठहराया है. वर्मा ने ये भी लिखा है कि इन सभी फैसलों में राकेश अस्थाना भी शामिल थे.

आलोक वर्मा ने कहा कि अस्थाना ने उस समय इनमें से किसी भी मामले में आपत्ति नहीं जताई थी. हालांकि अब वे रिश्वत मामले से ध्यान भटकाने के लिए ये विवाद खड़ा कर रहे हैं.

आईआरसीटीसी घोटाले में सीबीआई द्वारा आईआरसीटीसी निदेशक राकेश सक्सेना के खिलाफ जानबूझकर केस कमजोर के आरोप पर आलोक वर्मा ने कहा कि वे राजनीतिक पतन को लेकर चिंतित थे. इस मामले में मौजूदा बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी और प्रधानमंत्री कार्यालय के एक बड़े अथिकारी नजर बनाए हुए थे.

वर्मा ने कहा कि वे जरुरी प्रक्रियाओं का पालन किए बगैर जल्दबजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहते थे. राकेश अस्थाना के अधीन काम कर रहे जांच अधिकारी लालू प्रसाद यादव और राकेश सक्सेना के खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाए थे.
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आंध्र प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल ने भी सीबीआई के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल की सरकारों के इस फैसले पर पलटवार करते हुए कहा कि जिनके पास छिपाने को बहुत कुछ है, वे ही अपने राज्यों में सीबीआई को नहीं आने दे रहे हैं.



कोलकाता: पश्चिम बंगाल सरकार ने सीबीआई को राज्य में छापे मारने या जांच करने के लिए दी गई ‘सामान्य रजामंदी’ शुक्रवार को वापस ले ली. राज्य सचिवालय के एक शीर्ष अधिकारी ने यह जानकारी दी.

पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले से ठीक पहले आंध्र प्रदेश सरकार ने भी यही कदम उठाया है.

आंध्र प्रदेश सरकार की घोषणा के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को अपना समर्थन जताया था.

उन्होंने कहा, ‘चंद्रबाबू नायडू ने बिल्कुल सही किया. भाजपा अपने राजनीतिक हितों और प्रतिशोध के लिए सीबीआई व अन्य एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है.’


मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक इसके बाद ममता बनर्जी ने एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई, जिसमें यह फैसला लिया गया.

पश्चिम बंगाल में 1989 में तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने सीबीआई को सामान्य रजामंदी दी थी. एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न जाहिर होने की शर्त पर कहा कि शुक्रवार की अधिसूचना के बाद सीबीआई को अब से अदालत के आदेश के अलावा अन्य मामलों में किसी तरह की जांच करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी.

सीबीआई दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान कानून के तहत काम करती है. इससे पहले आंध प्रदेश की चंद्रबाबू नायडू सरकार ने सीबीआई को राज्य में छापे मारने और जांच करने के लिए दी गई ‘सामान्य रजामंदी’ वापस ले ली.

आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री (गृह) एन चिना राजप्पा ने संवाददाताओं से कहा कि सहमति वापसी लेने की वजह देश की प्रमुख जांच एजेंसी के शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ लगे आरोप हैं. इसके बाद ममता सरकार का फैसला सामने आया.

आंध्र सरकार के इस कदम को मोदी सरकार और मुख्यमंत्री नायडू के बीच टकराव और बढ़ने के तौर पर देखा जा रहा है. नायडू 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा से मुकाबले के लिए गैर-भाजपा दलों का मोर्चा बनाने का पुरजोर प्रयास कर रहे हैं.

हालांकि राजप्पा ने साफ किया कि सीबीआई केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ राज्य की अनुमति के बिना जांच कर सकती है.

वहीं नायडू के इस कदम को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भी समर्थन मिला है.



भाजपा का पलटवार
उधर, भाजपा ने नायडू सरकार के फैसले को भ्रष्टाचार, वित्तीय गड़बड़ियों और अन्य आपराधिक कृत्यों को बचाने की दुर्भावनापूर्ण कवायद कहा.

भाजपा के राज्यसभा सदस्य जीवीएल नरसिंहा राव ने एक बयान में कहा, ‘राज्य सरकार ने सीबीआई में हालिया घटनाक्रम का हवाला कमजोर बहाने के तौर पर किया है और उसकी मंशा भ्रष्टों को बचाने एवं भ्रष्टाचार व आपराधिक कृत्यों में शामिल लोगों और संगठनों को राजनीतिक संरक्षण देने की है.’

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल की सरकारों के इस फैसले पर पलटवार किया है. उन्होंने कहा कि जिनके पास छिपाने को बहुत कुछ है, वे ही अपने राज्यों में सीबीआई को नहीं आने दे रहे हैं.


उन्होंने कहा, ‘केवल वही जिनके  पास छिपाने को बहुत है, वे ही सीबीआई को अपने राज्य में नहीं आने दे रहे हैं. भ्रष्टाचार के मामले में किसी भी राज्य की कोई संप्रभुता नहीं है. आंध्र सरकार का यह कदम किसी विशेष मामले के चलते नहीं बल्कि आगे क्या हो सकता है इस डर के चलते लिया गया है.

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क्या इस देश में अब बहस सिर्फ़ अच्छे हिंदू और बुरे हिंदू के बीच रह गई है?

कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता का नाम लेना छोड़ दिया है. वह विचार जो उस पार्टी का विशेष योगदान था, भारत को ही नहीं, पूरी दुनिया को, उसमें उसे इतना विश्वास नहीं रह गया है कि चुनाव के वक़्त उसका उच्चारण भी किया जा सके.



मध्य प्रदेश के मतदाताओं को कांग्रेस वादा कर रही है कि वह गोमूत्र के व्यावसायिक प्रयोग का इंतज़ाम करेगी. गली-गली गोशाला खोलना तो अब कुछ अजूबा भी नहीं रह गया है.

गोमूत्र, गोबर, गोशाला आदि पर जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपना जो एकाधिकार समझ रखा था, कांग्रेस अब उसे चुनौती दे रही है. लेकिन साथ ही हमें यह भी समझ लेना चाहिए कि यह मूर्खता के राष्ट्रीय अभियान में भी कमर कसकर उतर पड़ी है.

इससे एक और संदेह होता है. वह यह कि पहले शायद भाजपा हिंदुओं को पूरी मूर्ख समझ कर ऐसे वायदे किया करती थी तो दूसरे दल भी अब हिंदुओं के बारे में ऐसा ही कुछ सोचने लगे हैं.

वरना 125 साल पुरानी पार्टी, जिसे भारत में आधुनिक भाव बोध के अगुआ होने का भी अभिमान था, वह अब इसके सारे तक़ाज़े को ताक पर रखने को तैयार हो गई है, तो इसका अर्थ यही है कि अपने मतदाताओं को लेकर उसकी राय कुछ ऊंची नहीं रह गई है.

इसकी ख़बर अभी हमें नहीं कि दूसरे दल, जैसे बहुजन समाज पार्टी क्या इसी क़िस्म के वादे कर रहे हैं या नहीं! अगर ऐसा नहीं है तो क्या यह मान लिया जाए कि उनके मतदाता बिलकुल अलग प्रकार की आबादी के सदस्य हैं?

क्या उन्हें हिंदुओं के मत नहीं चाहिए? या वे हिंदुओं को समझदार मानते हैं? वामपंथी दलों को तो छोड़ ही दें. हिंदुओं के बीच से भी आवाज़ नहीं सुनाई देती कि राजनीतिक दलों का यह आचरण उनका अपमान है.

गाय या पंचगव्य को लेकर हिंदुओं में श्रद्धा है. दूसरे धार्मिक समुदायों में वही उस अनुपात में नहीं है. इसका अर्थ यह नहीं है कि वे इस कारण हिंदुओं से अधिक बुद्धिमान हैं.

उनमें मूर्खता के दूसरे स्रोत हैं. लेकिन अभी उन्हें छोड़ दें. क्योंकि कांग्रेस और भाजपा के इस प्रकार के वायदे से यही लगता है कि उन्होंने मान लिया है कि उनके मतदाता शायद सिर्फ़ हिंदू हैं. 2014 एक घबराहट-सी भारत के संसदीय दलों पर तारी है, वह यह कि हिंदुओं को किस प्रकार लुभाया जाए.

प्रतियोगिता हिंदुओं के मतों के लिए ही रह गई है और उसमें भी विचारधारात्मक भाषा उच्च वर्ण की है. इसलिए गाय को लेकर पूरा राजनीतिक चिंतन उच्च जाति की समझ से प्रेरित है जो हिंदुओं के दूसरे जातीय समुदायों पर भी हावी है.

कांग्रेस के सर्वोच्च नेता मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं. वे इसे पुरानी व्यक्तिगत धार्मिक आस्था का मामला बताते हैं. लेकिन इसका इतना भव्य प्रदर्शन क्यों होना चाहिए और क्यों वह चुनाव के वक़्त ही होना चाहिए, इसका संतोषजनक उत्तर वे नहीं दे पाते.

चुनाव के ही समय कांग्रेस ने राम वन गमन पथ यात्रा की भी सोची. राम मध्य प्रदेश के ही नहीं, पूरे भारत के वनों में घूमे हैं. इसलिए एक रामटेक नागपुर के पास भी है. आख़िर असम में भी राम कथा है और भीलों में भी.
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